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  • कुलश्रेष्ठों के इतिहास की कहानी


    02-Aug-2017,16:43:03,kulshreshthaworld.com
    भारतवर्ष का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन वह श्रुति व स्मृति पर आधारित है। यहाँ पर समय व वर्षकाल का समय नही रखा गया, इस वजह से पष्चिमी इतिहासकार उसकी सच्चाई पर आगुंल निर्देष करते है। वैसे भी षासकीय संरक्षित पुस्तक सग्रंहालयो को विदेषी हमलावर व आक्रांताओ ने भोजपत्र लिखित पुस्तको को भी नष्ट कर दिया था। इतिहास विजयी व जीते हुए वीरो का लिखा जाता है। क्या आपको पता है द्वापर मे एक कायस्थ षक्तिषाली सम्राट हुआ ,जिसने भारत के बडे भू’-भाग पर अपना राज्य स्थापित किया था। वह महाबलिष्ठ गदाधारी पहलवान था ,जिसका नाम था महाराजाधिराज जराधंस ,जिसकी राजधानी मगध थी। जिसने कई दषको तक एकक्षेत्र राज्य किया था। कंस उसका दामाद था। षिषुपाल ,विदर्भ नरेष भीष्मसा जाधवराव इत्यादि उसके अर्न्तगत राज्यो का प्रतिनिधि रहकर राज उपभोग कर रहे थे ,लेकिन कृष्ण की कुटिल कुटनीती से उसे हराकर हत्या करवा दी गई थी, इस वजह से वह खलनायक के नाम से वर्णित हुआ। कहने का मतलब हैकि इतिहास विजेताओ का होता है। लेकिन कुलश्रेष्ठ तो लडाका या विजेताभी तो नही हुए इससे इनका इतिहास नही मिलता। किदवन्ती श्रुती व स्मृतियो पर आधारित इतिहास की कडियो को जोडने का प्रयास किया जा रहा है - 1 मरीची 2 ़आत्रि 3 ़ अंगरा 4 ़पुतस्तय 5 ़ प्रलद 6 ़ ऋतु 7 ़भृगु 8 ़ वषिष्ठ 9 ़ दक्ष 10़ कर्दम 11 ़ नारद 12 ़सारद 13 ़सनन्दन 14 ़सनातन 15 ़ संत कुमार 16 ़स्वयंभू 17 ़चित्तगुप्त अथवा चित्रगुप्त भगवान श्री चित्तगुप्त जी का पाणिग्रहण सस्ंकार दो कन्याओ के साथ हुआ था- 1़ ब्रह्रा जी के पुत्र मारीची -कश्यप - विश्ववान - सुशर्मा की पुत्री इरावती । 2 ़ब्रह्रा जी के पुत्र मारीची - कश्यप - विश्ववान - श्राद्धदेव मनु की पुत्री नन्दिनी। माँ इरावती के पुत्र- 1 ़ चारू 2 ़सुचारू 3 ़ चित्रारव्य 4 ़मतिमान 5 ़ हिममान 6 ़चित्रचारू 7़ अरूणचारू 8 ़अतिन्द्रेय माँ नन्दिनी के पुत्र- 1 ़भानु 2 ़वीर्यभानु 3 ़ विभानु 4 ़विश्वभानु बारह पुत्रो का विवाह नागवंशी कन्याओ के साथ अवन्तिका नगरी मे सम्पन्न हुआ, लेकिन वीर्यभानु का विवाह दो कन्याओ के साथ हुआ जो बाद मे श्रीवास्तव व खरे कहलाए। अतिन्द्रेय या जितेन्द्रेय का विवाह मंजूभाषिनी के साथ हुआ। बाद मे जिनकी संताने कुलश्रेष्ठ कहलाई। वह व उनकी सन्ताने नवदीव (नदिया) बंगाल मे शिव मंदिरो मे पुजारियो का कर्म करते थे । तदन्तर मे उनकी सन्तान विलक्षण प्रतिभा व राज कौशल से महापद्य राजा नन्द के मंत्री बने व कुछ दिनो तक महामंत्री भी रहे । उनका नाम राम जी शर्मा था। राजा महानन्द एक एैयाशी व मद्यपान मे सारा समय गुजारता था। ईर्ष्या की वजह से कुछ चापलूसो ,मंत्रियो ने महानंद के पास श्रीरम जी की चुगली करदी जिससे महानंद ने श्रीराम जी के सम्पुर्ण परिवार का संहार द्वारा वध करवा दिया। लेकिन उस काल के हिन्दू निसमानुसार गर्भवती महिला का वध वर्जित था,इस वजह से महामंत्री की एक गर्भवती पुत्रवधु को कुछ समय के लिए जीवनदान मिल गया। राज कवि शंकर जी भट्ट महामंत्री के स्नेही पडोसी थे, वह सच्चाई से परिचित थे ।उसी रात को उसके साथ गर्भवती पुत्रवधु ने नदियो के रास्ते कानगौरा राज्य मे शरण लेली। उस गर्भवती पुत्रवधु को जुडवा पुत्रो का जन्म हुआ,पहले का नाम परिक्षित व दुसरे का नाम जयदेव था। श्री शंकर जी भट्ट की देखरेख मे पालन पोषण हुआ। मेधावी छात्रो ने शास्त्रो व संस्कृत भाषा का अध्ययन किया व बडे होकर राजदरबार मे सेवा करने लगे । यह लोग कायस्थो का पेशा करने लगे लेकिन श्री शंकर भट्ट जी की देखरेख मे जीवनयापन की वजह से वह पुर्ण शाकाहारी थे। प्याज व लहसून तथा मद्यपान वर्जित था। कन्नौज के राज दरबार मे माथुर व सक्सेना कायस्थो का वर्चस्व था।उनके अर्न्तगत राजदरबार मे सेवा शुरू की। इस तरह से राजाश्रय मिला। फले फुले व धीरे-धीरे काफी बडा समुह बन गया। कान्यकुब्ज कुल के कन्नौज राजा यशोवर्धन को कायस्थवंशीय महाराजाधिराज ललितादित्य मुक्तपीडा ने हराकर अपना राज्य स्थापित किया। अब कन्नौज कश्मीर के कायस्थ राजा महाराजाधिराज ललितादित्य मुक्तपीडा का राज्य हो गया था। इस समुह ने राजा के लिए जनता से महसूलकर या कृषिकर वसूल करवाकर राजा से वाहवाही तो लूट ली तथा कायस्थ समूह के न होते हुए भी बहुत ही अच्छी तरह से कायस्थ पेशा को पुर्ण रूप से निर्वाह किया ।इससे खुश होकर इस समूह को कायस्थो मे शामिल करने के लिए विराट कायस्थ सभा समूह से अनुशंसा की व उसी काल मे आठवी शताब्दी मे पंजाब के राजा विलान तौमर या अनंगपाल तौमर द्वारा पुन; हिन्दू राज्य की स्थापना के बाद पंजाब राज्य मे विराट कायस्थ सम्मेलन का आयोजन हुआ था। जिसमे कश्मीर के कायस्थ राजा महाराज ललितादित्य मुंक्तपिडा ने भी भाग लिया। उस सभा मे इस समुह को अतिन्द्रेय की सन्तान माना गया व समुह के पुजा पाठ व शाकाहारी आहार की वजह से कुलश्रेष्ठ की पदवी दी गई ।कई राज्यकर्ता आये व चले गये लेकिन ये समुह उसी सुजलाम व सुफलाम दोआव जगह पर बना रहा। यह समुह पेशा की जगह से कायस्थो मे तो सम्मिलित हुए लेकिन रोटी व बेटी का चलन नही था। कायस्थो मे कुलश्रेष्ठ की पदवी मिलने से यह समूह अहंकारी हो गया। आपस मे लडाई -झगडे बड गये। समाज मे धीरे -धीरे दूसरे कारणो की वजह से अराजकता फैलती रही व मुसलमान आक्रमणकारी लुटपाट कर ले जाते। जब भारतवर्ष मे अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान का वर्चस्व था मोहम्द गौरी ने हमला किया। गौरी हार गया तथा हारने के बाद भी पृथ्वीराज चौहान ने उसे क्षमादान दे दिया। वह वापिस चला गया। कुछ कालान्तर मे राजा जयचन्द ने पृथ्वीराज चौहान से संयोगिता स्वयंवर के अपमान का बदला लेने के लिए जयचंद के निमंत्रण पर गौरी ने दुसरी बार हमला कर दिया जिसमे पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। बन्दी बना लिया गया, तत्पश्चात गौरी लुटपाट के लिए जयचन्द के राज्य पर भी हमला कर दियातथा उसका वध कर दिया गया,सभी जगहो पर अराजकता फैल गई, आए दिन लुटपाट की वजह से इस असुरक्षित क्षेत्र मे इस समूह के कुछ लोगो ने सुरक्षित ठिकानो पर शरण ली।यह काल 11 वी सदी से 12 वी सदी मे आता है।इस काल मे समुह के बहुत लोग सपरिवार कन्नौज राज्य छोडकर धौलपुर क्षेत्र मे स्थापित हो गए।अराजकता व राजाश्रय न मिलने की वजह से इन समुह ने खेती बाडी का व्यवसाय किया।बचे हुए लोगो को कभी राजाश्रय मिला कथी नही मिला। पढाई - लिखाई कम हो गई थी, जो पढ नही पाते थे वह खेती व्यवसाय व जो पढे -लिखे थे वह नौकरी करने लगे।उस सामाजिक अस्थिरता व हलचल के बाद मुसलमान नवाब या प्रतिनिधियो द्वारा कायस्थो को राजाश्रय मिलना शुरू हो गया था। कन्नौज के नवाब को लगान वसुली करने मे काफी कठिनाई आ रही थी।जनता लगान देना नही चाहती थी।तभी नवाब को इस समुह का पता चला,उसमे कुछ लोग उस समय फारसी सीख गए थे।नवाब व जनता से अच्छा संवाद साध सकने की वजह से खुश होकर लगान वसुली के लिए 14 महसुल क्षेत्र की जागीर या सुबेदारी या जमीदारीयां इस समुह के 14 नेताओ को दे दी गई।उनके अगुआओ के साथ वहां ज्यादातर लोग वास करने लगे। लगान वसुली का रोजगार मिला जिससे उनके भी जीवनयापन मे स्थिरता आ गई।तदनन्तर वह मरैजे या गाँव खेडे कहलाए। उनके अगुआ व वह खेडे गाँव निम्न प्रकार है- 1 ़परिक्षित-रजौरा 2 ़जयदेव- खतौली 3 ़अंवादास- उरमुरा 4 ़वासदेव -जार 5 ़सुधार सिंह -भांती 6़ केलनसिंह -उमरी 7 ़पाण्डे- वासदेवमई 8 ़परशादी - लखरउ 9 ़ लक्ष्मण प्रसाद -देवा 10़ मकरंद- नौठा 11 ़ महाराजसिंह -गहराना 12 ़बद्रीप्रसाद-महरारा 13 ़तंलशीराम-पतारा 14 ़जगतसिंह-अथैया तदन्तर आबादी बढ गई है उपरोक्त गाँवा मे इस समुह की सख्ंया बढने से आगे की पीढीयो का मुगल सल्तनत मे और विस्तार हुआ - 1 ़उरमुरा धात्री 2 ़तखरउ-सौधरा 3 ़अथैया -वासुक 4 ़भांती -उडेसर 5 ़नौठा -हडौली 6 ़गहराना -ररूआ गुलामवंशीय शासक - शेरशाह सूरी ,मुगल सल्तनत काल मे कायस्थो ने संस्कृत शास्त्रो के अध्ययन के साथ फारसी को सीखने मे पारंगत हुए तथा राजाश्रय मे कुछ पद निर्माण हुए जैसे लाला,मुनीम,नायब,पटवारी,मुंशी,कारिंदा,मुंसिफ,दीवान इत्यादि। उन्ही पदो पर कुछ पढे- लिखे लोग भी आसीन हुए। कायस्थ कहते थे कि- खेती करै न बंजी जाये विद्या के बल बैठे खाये ना हम खेती करते है ना व्यापार करते है, फिर भी विद्या की वजह से बैठ कर खते है। शायद आप लोगो को ज्ञात होगा कि आज से करीब 500 साल पहले एक कवि घाघ हुए है, उन्होने उस काल की परिस्थितियो व समाज प्रतिष्ठा के बारे मे लिख था- उत्तम खेती मध्यम वान और चाकरी भीख समान कृषक को वलीराजा या अन्नदाता का प्रथम दजा्र्र्र्र्र्र्र था, व्यापार मध्यम पेशा माना जाता था विषेशत़; नौकरी तो भीख के समान तुलना की गई हैे। कहने का मतलब नौकरी क्षुद्र पेशा समझा गया था, इस वजह से ब्राह्रण वर्ग कायस्थो को क्षुद्र पेशा करने वाला समझता था। ब्र्र्र्राहा्रमण हमेशा कायस्थो के आलोचक रहे ैशंकराचार्य व दूसरे ब्राहा्रमणो ने कायस्थो को शुद्र पेशे वाला समझा था,जिस वजह से स्वामी विवेकानन्द को शिकागो मे हिन्दु धर्म के प्रतिनिधि के रूप मे शंकराचार्य ने मान्यता नही दी थी। बौद्ध भिक्षुओ की अनुशंसा की वजह से स्वामी विवेकानन्द जी ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। अब जो लोग घैलपुर व जालौन मे थे वह बीस खेडो से सम्बन्धित नही थे क्योकि खेडे विस्थापितो के जाने के बाद बने ।जालौनिया व धौलपुरिया इस समूह से निकलकर उससे पहले सुरक्षित स्थानो पर छिप गए या स्थापित हो गए। उस काल मे आवागमन के साधन बैलगाडी ,घोडागाडी या घोडा ही थे इससे दोआवी कुलश्रेष्ठ व धौलपुरिया व जालौनिया कुलश्रेष्ठो के समूहो मे बेटी के सम्बन्ध स्थापित नही हुए। जिन लोगो की शादी कुलश्रेष्ठ से बाहर हुई वह धंसा व उन्नीसा कहलाए जाने लगे। संकुचित विचारो की वजह से विघटन होता रहा जिससे बेटी व्यवहार बेद रहे। ब्रिटिश के शासनकाल मे गावो मे निवास व उच्च पढाई की व्यवस्थाए न मिलने से पढाई लिखाई मे पीछे रह गए । चौथी कक्षा या वर्नाकुलर शिक्षा के बाद गाँव या तहसील स्तर के सरकारी पदो पर कुछ लोग काम करने लगे ।चंद परिवार ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके। ब्रिटिश सरकार के समय ज्यादातर इस समाज के परिवार के मुखिया नौकरी पेशा रहे।स्वतंत्रता के बाद हम ज्यादा प्रगति मे सरीक नही हो पाए फिर भी चंद परिवार उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके।जिससे कुछ लोग सहायक वकील व वकील तथा डॉॅ, इत्यादी का पेशा अपनाने मे सफल रहे।रेल्वे कोर्ट डाक तहसील व जिला राज्य व इतर विभागो मे नियुक्तियां पा सके। हमे शुक्र्रगुजार रहना चाहिए चौ, चरण सिंह का । चौ, चरण सिंह का उल्लेख न करना इस कहानी के साथ नाइंसाफी है । उ,प्र, के मंत्री रहते हुए 1952 मे तत्कालीन पटवारीयो की माँगो पर ध्यान नही दिया । इस वजह से पटवारीयो से सामूहिक त्यागपत्र दे दिये। त्यागपत्र के बाद वे लोग बेरोजगार हो गए। जिससे रोजगार की खोज मे वे गाँव से बाहर निकले,शहर मे रोजगार के लिए बस गए। हम चौ , चरण सिंह के शुक्रगुजार है, कि हम कुछ आगे बढ सके ।हमारे काम ही लोग उच्च पदो पर आसीन है, फिर भी इससे नई पीढी के लोग आज उच्च शिक्षित नए विभिन्न विभागो व संस्थानो मे अलग अलग पदो पर काम कर रहे है। भारत मे सॉफटवेयर क्षेत्र मे उल्लेखनीय उपलब्धियो की वजह से हमारे बालक बालिकाए आज देश विदेश मे फैले हुए है । आज के युवाओ को विषेश मेहनत की जरूरत है। आरक्षण व इतर वजहो की वजह से अच्च पदो पर प्रतियोगिता बहुत कठिन से कठिनतम होती जा रही है। सभी दोआबी बीसा ,जालोनिया या धोलपुरिया कुलश्रैष्ठ एक ही परिवार के है। इनमे कोई उच्च या निम्न नही है ।हाँ सामाजिक रीतीयां या कुरीतियाँ भौगोलिक परिदश्य से अपनाई गई है। स्थानीय समाज व भौगोलिक व सरकारी नियमो की वजह से कायस्थो को मुसलमानो के नजदीक माना गया था। क्योकि कई सदियो से हम मुसलमानो के राज्य मे नौकर पेशा व गुलाम रहे व फारसी व उर्दू के ज्ञाता होने की वजह से जातियाँ हिन्दू होने पर भी शक की नजरो से देखते रहे है।मदरसो मे पढाने वाले मुल्ला मौलवी व मुंशी होते थे ।जहाँ उर्दु पढाई जा रही थी। मुंशी ज्यादातर कायस्थ ही होते थे। मुख्यत; मुंशी उर्दू साहित्य व गणित पढाते थे। आज हम सभी कुलश्रंष्ठ आपसी भाई चारा व बेटी का व्यवहार करते है। केवल चंद संकुचित विचार वाले कुलश्रेष्ठो को छोडकर समाज एकरूप हो गया है। आजकल तो अर्न्तजातिय शादीयाँ भी हाक रही है ,लेकिन ये कुलश्रेष्ठ समाज के विघटन को बढावा देती है, इससे कुलश्रेष्ठ समाज के सिकुडने का डर है ।अगर इसी दर से विघटन होता रहा तो आने वाली सदी मे कुलश्रेष्ठ का इतिहास नाम शेष ही रह जाएगा। कुलश्रेष्ठ परिवार मे कोई राजा होने का उल्लेख नही मिलता था, फिर भी दीवान, जमीदार,जागीरदार तो कई परिवार थे। उटा जिले मे बिलराम एक बडा कस्बा था जो सुजलाम सुफलाम परिसर था। उसी बिलराम मे एक जमीदार परिवार ने 1857 के गदर काल मे एटा के तत्कालीन कलेक्टर ए.एम. फिलिप्स को पनाह दी थी। उनकी अनुशंसा पर श्रीयुत राजा दिलसुख राय को 1859 के दिल्ली दरबार मे 31 मौजे इनाम मे दिए गए व राजा को सरकार की तरफ से तिलक कराया गया था। बाद मे राजा श्री शंकर सिंह बहादुर जी ने अग्रेंजो से कासंगत खरीद लिया । वहाँ बाकायदा किला इत्यादी बनवाया गया। वह परिवार भगवान शंकर जी का बडा भक्त था । तत्कालीन एटा शहर मे कैलास मंदिर व राजा हाउस बनवाया गया था, जो आज भी भव्यता व दानशीलता की कहानी कहता हुआ खडा है । प्राचीनतम अगर किसी सभा का नाम आएगा तो वह आगरा व उसके आसपास के कुछ कुलश्रेष्ठ बन्धुओ ने पटवारियन स्कूल के पास शाहगंज मे कुलश्रेष्ठ सभा की स्थापना की उसमे हमारे समाज के अनेक नामी गिरामी पुर्वजो ने उसमे भाग लिया । वहाँ एक चित्रगुप्त स्कूल भी चलाया जाता है। दिल्ली मे काफी कुलश्रेष्ठ परिवार बसे हुए है, उन सबने मिलकर नवम्बर 1964 मे दिल्ली कुलश्रेष्ठ महासद्यं की स्थापना कुछ कुलश्रेष्ठ परिवारो की अगुआई मे की गई,जिसने 3 नवम्बर 2014 को 60 साल का जश्न मनाया। दिल्ली के कुछ सेवाभवी व धर्मभाव मतावलम्बी कुलश्रैष्ठ बन्धुओ ने कुलश्रेष्ठ कल्याण समिति सस्ंथा की स्थापना की जो समाज के कमजोर व इतरजनो को समय-समय पर आर्थिक मदद का हाथ बढाती है ,जिसके सदस्य आज विश्वभर मे फैले हुए है। भारत के विभिन्न शहरो मे कुलश्रेष्ठ परिवार रह रहे है। अनेक शहरो मे कुलश्रेष्ठ सभाएं संचालित होती है । लगभग सभी अखिल भारतीय कुलश्रेष्ठ महासभा से जुडी हुई है। सन् 2002 के सर्वे के अनुसार पुरे विश्व मे हमारे कुलश्रेष्ठ परिवार अंदाजन 5000 है, जिनकी कुल संख्या 25000 से ज्यादा नही है। सच्चे मन से बोलो श्री चित्रगुप्त भगवान की जय। इति शुभम।